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ग़ज़ल
वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे
मिरे ख़यालों में रंग भर दे मिरे लहू को शराब कर दे
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
वही आहटें दर-ओ-बाम पर वही रत-जगों के अज़ाब हैं
वही अध-बुझी मिरी नींद है वही अध-जले मिरे ख़्वाब हैं